भारत की कुल जनसंख्या का ७६ प्रतिशत भाग ७ लाख गांवों में रहता है। लगभग ३ करोड़ लोग झुग्गी झोंपड़ियों में एवं ५ करोड़ लोग जंगलों और पहाड़ी भू-भागों में बसे छोटे गावों में निवास करते हैं। स्वतन्त्रता के ६ दशकों के पश्चात भी भारत की कुल जनसंख्या का एक बहुत बड़ा प्रतिशत शिक्षा एवं विकास की अन्य गतिविधियों से अछूता रहा है। राजनैतिक स्वतन्त्रता के विपरीत शिक्षा सामाजिक एवं आर्थिक अन्धकार के कारण गांवों का रूख तेजी से शहर की ओर बढ़ता गया। विद्या भारती ने शिक्षा एवं सामाजिक उत्थान की ज्योति इस देश के तीन चौथाई से अधिक की जनसंख्या वाले उन क्षेत्रों से आरम्भ की है जो शिक्षा एवं विकास की सभी गतिविधियों से अछूते रहे हैं। आज ६२१९ विद्यालय विभिन्न गांवों में चल रहे हैं जिसमें ५८३ अविकसित क्षेत्रों में एवं ८३० आदिवासी स्थानों में कार्य कर रहे हैं। स्वतन्त्रता के ६ दशकों के पश्चात विद्या भारती ऐसे अनछूए एवं दूरवर्ती क्षेत्र में पहुंचने वाली पहली संस्था है। विशेष प्रकल्प आर्थिक सुदृढ़ता आत्म निर्भरता संस्कृति के ज्ञान स्वास्थ्य सामाजिक चेतना,मातृ भूमि के लिए संकल्प एवं प्रेम को बढ़ाने के लिए चलाए जा रहे हैं।
मध्यप्रदेश का सागर जिला गाजियाबाद का पलखुवा एवं सुल्तानपुर जिले का धम्मौर क्षेत्र ग्रामीण विद्यालयों को आरम्भ करने के लिए एक नये प्रकल्प के रूप में लिये गये हैं। इन विद्यालयों के विषय एवं पाठयक्रम देश में चलने वाले विद्यालयों से भिन्न रखे गये हैं। इन विद्यालयों में नियमिक शिक्षा के साथ अनेक व्यवसायिक शिक्षाओं को जोड़ा गया है।
बहुत समय से भारत के आदिवासी क्षेत्रों में इसाई मिश्नरियों द्वारा शिक्षा एवं स्वास्थ्य के नाम पर यहां की जातियों को सुविधा प्रदान करके उनका धर्मान्तरण किया जाता रहा है। ऐसे मिश्नरियो को दोष देने के बजाय विद्या भारती ने इन वनवासी क्षेत्रों में अपने शैक्षणिक कार्यक्रमों को आरम्भ किया जिससे सामाजिक समरसता राष्ट्रवादी विचार सभी धर्मों के लिए आदर, देशप्रेम की भावना एवं भारतीय धर्म और संस्कृति को शिक्षा के द्वारा आम जन-मानस तक पहुंचाने की चेष्टा की जाती है।